शहर से गुजर वो पूछेंगे
वो कभी मेरे शहर से गुजरेंगे
हाल मेरा पूछ अपना सुनायेंगे
क्या बीती है हम पर अब तक
पास उनको बिठा फरमायेंगे
वक्त ऐसा जिन्दगी में आया
भ्रमित मन कुछ समझ न पाया
मन्द हो गई गति , थम गये पग
कोरोना का डर ऐसा समाया
वेदना गहन इतनी मिलने की
चाह आतुर पास बैठ लेने की
दर्द अपना कह दूँ तेरा सुन लूँ
जब गुजरेंगे तो पूछ लेने की
तन से तन दूर , मन से मन दूर
हो गये जब स्वप्न मिलन के चूर
बढ़ गई सोशल दूरियाँ इतनी
एक दूजे को लगने लगे हो हूर
वो कभी गुजरेंगे तो पास ठहरेंगे
ठहर कर अधर मुस्कान बिखेरेंगे
प्रानभूमि हो जायेगी तब सिंचिंत
इस ओर से गुजर जब वो मिलेगें