शहर में दम घुटता है
**शहर में दम घुटता है**
********************
शहर में अब दम घुटता है,
रहे बी.पी.घटता बढ़ता है।
दफ़न हैं यादें बचपन की,
पच्चपन में गम मिलता है।
कभी गुजरे हम कूचों में,
अभी भी सीना जलता है।
सबक सीखा है अंबर से,
खड़ा संकट में दिखता है।
लड़ाई लड़ते जीवन की,
सदा ही जीता मरता है।
नहीं रुकता है मनसीरत,
वक्त जो आया ढलता है।
********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)