शहर माई – बाप के
पुण्य ना मिली कर्जा, चढ़ जाई पाप के
कबो ना बोलईहा, शहर माई – बाप के
दिलवा पे पाथर रखी, छोड़े घर बार हो
अंधेरा छाई जाला, मनवा के दवार हो
पोटली दुलार वाली, राखी कउने ताखा हो
घरवा के पेडवा से, टूट जाला शाखा हो
बुझत दिया हवे, पुरखन के प्रताप के
कबो ना बोलईहा, शहर माई – बाप के
माई बीना अंगना रोई, बाबू खातिर खेत हो
दुअरा के नीमिया से, नाहि होई भेट हो
रिश्ता नाता होई, जाई भाई रेत हो
दिन दुपहरिया नाची, घरवा में प्रेत हो
मन पछताई दिल, रोई पश्चाताप में
कबो ना बोलईहा, शहर माई – बाप के
दुवरा के ताखा देखी, माई बाबू के बाट हो
बाबू जी के बात लागी, माठा नियर खाट हो
माई के प्रान अटकल, रहीं घरवा के ताड़ में
असुआ छुपावत फिरिहे, बालकनी के आड़ में
मोढ़वे से लऊट जईहै, रिश्तेदार संस्कार नाप के
कबो ना बोलईहा, शहर माई – बाप के
पुण्य ना मिली कर्जा, चढ़ जाई पाप के
कबो ना बोलईहा, शहर माई – बाप के