शहर को मेरे अब शर्म सी आने लगी है
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बत के हवाले,,,,!!
ग़ज़ल
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शहर को मेरे अब शर्म सी आने लगी है,
दिलो में बसी नफ़रत जो बताने लगी है।
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दर्द ए दिल किस को बताऐं आजकल,
दुख में दिया साथ जुबां जताने लगी है।
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जमाना न रहा जब हम राह निहारते थे,
मगर आज दुनिया नज़र हटाने लगी है।
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किसे कहे अपना अब डर सा लगता है,
छिपा सर्प है कौन,चिंता सताने लगी है।
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सहे दर्द हमने भी मगर टूटे नही,पता है,
हमें जिंदगी हर रोज आजमाने लगी है।
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अभी बाकी है तुझमे जान “जैदि”, हमें,
तुम्हारे करवटों की सदा सुनाने लगी है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”