शहर की सड़कें सूनी पड़ी है।
शहर की सड़के सूनी पड़ी है फिज़ा भी सहम रही है।
हवाओं में जहर घुल चुका है जिंदगियां सिहर रही है।।1।।
जाने क्यों मजलूमों की आहे खुदा भी ना सुन रहा है।
शैतानों ने बरसाई हैआग सारी बस्तियां उजड़ रही है।।2।।
अभी कल की ही बात है यह सारा शहर हंस रहा था।
आज मासूमो के लबों से दर्द की आहें निकल रही है।।3।।
यहां की सारी ही सड़कों पर खूं के धब्बे ही धब्बे है।
देखकर लाशों का ये मंजर सभी की नज़रें रो पड़ी है।।4।।
ऐ खुदा इससे तो अच्छा है कयामत ही नाज़िल कर दे।
सुकुने मौत ही मिल जाएं जिंदगियाँ बड़ी तड़प रही है।।5।।
यूं आज़ादी से रहना हो गया है गुनाह इस दुनियां में।
खुदा बुला लो अपने पास यहां इंसानियत मर रही है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ