शहर का पानी नमकीन है
शहर का पानी नमकीन है
********************
शहर का पानी नमकीन है,
नगर का वासी गमगीन है।
बगल में हैं गोले दागते,
मगर जीने का शौकीन है।
न सोचो समझो कर डालिए,
कर्मी अपनी धुन में लीन है।
पिता के पैरों की धूल सा,
नकुल कितना भी प्रवीण है।
कसौटी मनसीरत जानता,
जगत मे होती तौहीन है।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)