“शहर और गॉंव की तकरार “
“शहर और गॉंव की तकरार ”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
==================
“मैं शहर हूँ
मैं गॉंवों से बहुत
आगे निकल चूका हूँ !
गॉंव को तो मैं
हजार कदम पीछे
छोड़ चूका हूँ !!”
“मैं विकसित हूँ
सारी सुविधाएँ
मुझको पहले मिलीं !
बिजली ,पानी
सड़क माकान
और सौगातें मिलीं !!”
“सम्पन्यता की
सीढियों पर
मैं चढ़ता चला गया !
इसतरह सांप -सीढ़ी
खेल में गॉंव को
पीछे छोड़ता चला गया !!”
“खान -पान में
मैं सदा परहेज
करता हूँ !
मुझे किसी से
क्या लेना
मैं संयम से रहता हूँ !!”
गांव ने भी
विनम्रता से अपनी
बात सहजता
से यूँ कहा !
छू गया सबके
ह्रदय को और
सबको भा गया !!
“हम सुन रहे थे
शहर की
विवेचना !
हम नहीं करते
कभी किसी की
आलोचना !!”
“हम भले सुख-समृद्धि
से बंचित हैं !
पर समाज के उत्थान
के लिए हम
चिंतित हैं !!”
” यहाँ विपदा
किसी को
छू भी लेती है कभी भी !
स्नेह और सत्कार
से बोझ सबकी
हम उठाते हैं तभी ही !!”
” हम एक दुसरे
के पूरक सदा
बनकर रहे हैं !
सुख में भी साथ
रहकर दुःख में
पर्वत बने हुए हैं !!”
अब हमें निर्णय
स्वयं करना होगा ,
कौन आगे बढ
रहा यह सोचना होगा !!
कौन है आगे यहाँ पर
कौन पीछे रहगया ?
कौन कितना करीब है ,
निर्णय हम पर रह गया ??
====================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लीनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत