शहरों से अच्छे देहात
बात बात से निकली बात
शहरों से अच्छे देहात
गांव की सरहद के अंदर , शुद्ध घी व दूध निखालिस ।
दूध दोह पशुओं के मालिक, नहीं छोड़ते हैं लावारिस ।
सैर सपाटा कर पशु लौटें,, होने को जब होती रात ।
शहरों से अच्छे देहात ।
उपलों उबली घी बघारी, बिन पालिस की देशी दाल ।
चूल्हे की घी चुपड़ी रोटी, तबकी यादें लायें राल ।
सहिष्णुशील ग्रामीण इकाई, ना हों झगड़े ना उत्पात ।
शहरों से अच्छे देहात ।
पूरब-पछुआ शहर न जातीं, डालें डेरा आकर गांव ।
गरमी में कुंओं का पानी, तरुवर सी दे ठंडी छांव ।
वे ही कूप शीत आते ही, बन जाते हैं ऊष्ण प्रपात ।
शहरों से अच्छे देहात ।
संकरीं शहरी छतें मुंडेरें, धूप न फैला पाती पैर ।
थक हार कर, सुसताने को, करती वह गांव की सैर ।
कर विश्राम लौट्तीं किरणें, अगले दिन को हो निष्णात ।
शहरों से अच्छे देहात ।