शहद वाला
रविवार का दिन है, और साल का सबसे खुबसूरत, ‘सावन का महीना’, आसमान में बादल और सूरज दोनों लुका-छिपी खेल रहे है मैं… घर के बरामदे में बैठा रविवार के दिन का मज़ा उठाते हुए शहर की ख़बरों के शोर के बीच गर्म चाय की चुस्कियों से गुहार लगा रहा हूँ उन दोनों के इस अनूठे खेल में कभी मुझ पर बादल की ठंडी-ठंडी हल्की सी कपकपाती छावं आ गिरती तो कभी सूरज की कुनगुनी धूप की आंच तुरंत मुझे राहत पहुँचाने को खड़ी हो जाती है और साथ ही ये हवा की प्यारी थपकियाँ मानो मुझे उड़कर कश्मीर की किसी ख़ूबसूरत वादी में चलने को कह रही हो आसमान में भात-भात के नए-पुराने पक्षीयों का आवागमन हो रहा है कि मानो पारिवारिक भरण-पोषण के लिए अपने दफ़्तर पलायन कर रहे हो और साथ मुझे अपनी मधुर मातृभाषा में मंजुल सुबह का अभिन्दन कहते जा रहे हो तभी के अचानक अखबार पर गिरती पानी की बूँद ने इस खेल में और दिलचस्पी पैदा कर दी हल्की-हल्की बूंदा-बांदी से शुरुवात कर वो पानी तेज़ बारिश में बदल गई समझो जैसे क्रिकेट मैच में कोई खिलाड़ी अचानक से तीव्रगति से रनों की बौछार करने लगता हो मैं तुरंत आपाधापी में अपना बोरिया बिस्तर समेट कर अन्दर कमरे की तरफ भागा और बस देखते ही देखते कुछ पलों में इस तेज़ बारिश ने हम चारो के उस ख़ूबसूरत खेल को धूमिल कर दिया |
बारिश की थमती आवाज़ के साथ कानों में एक अजीब सी आवाज़ सुनाई पड़ती है “शहदवाला….- शहद ले लो साहब शहदवाला… मधुमक्खीयों का शुद्ध और ताज़ा शहद…, शहदवाला….- शहद ले लो साहब शहदवाला…” बारिश की गति थमते-थमते कानों में उस आवाज़ की गूँज भी थमती चली गई कुछ देर बाद बारिश भी थम गई और वो आवाज़ भी के तभी अन्दर से आवाज़ आई “नाश्ता लग चुका है आकर नाश्ता कर लीजिये” ये आवाज़ मेरी श्रीमती जी की थी जो बेहद सरल स्वभाव की स्त्री है खैर मैं नाश्ते कि टेबल पर पहुंचा और देखता हूँ कि टेबल पर मेरा सबसे प्रिय नाश्ता “आलू के पराठे और दही” थे मैं झट नाश्ते पर टूट पड़ा मानो किसी बच्चे को अपना प्रिय खिलौना दिख गया हो मैं नाश्ता ख़त्म कर के उठा था और मौसम का हाल देखने छत की और बड़ा कि मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी “शहदवाला… शहद ले लो साहब.. शहदवाला…” मैं तुरंत उसे देखने घर के बहार की तरफ़ दौड़ा मैंने घर के मुख्यद्वार से देखा कि मेरे बाएं ओर से एक आदमी अपने सिर पर एक बड़ा सा बर्तन धरे मेरी ओर आ रहा है दरअसल मैं उसे देखने के लिए इतना उत्सुक इसलिए था कि ख़ुद को रोक नहीं पाया खैर जाने दो यह एक रहस्य है, वो आदमी आवाज़ लगाते हुए मेरी और बड़ते आ रहा है उसका वो अनोखा रूप, गठीला बदन, लम्बा चेहरा, गहरा सावंला रंग, लम्बी तीखी नाक़, बड़ी-बड़ी आँखें, घुंघराले लच्छेदार बाल, तन के ऊपरी हिस्से पर हल्की मटमैली सी कमीज़ पहने हुए है जिसके ऊपर के बटन खुले हुए है और नीचे पाँव में रबर की चप्पल, पतलून एक बगल से ऊपर चड़ी हुई है हाल ही हुई बारिश के कारण पैरों पर कीचड़ लगा हुआ है, कि यकायक मेरे कान में एक भारी आवाज़ पड़ी “शहद ले लो साहब, ताज़ा शहद है कुछ घंटो पहले ही तोड़ कर लाया हूँ ले लीजिये ना बस थोडा सा ही बचा है सोचा कि इसे बैच दूँ और फिर गाँव के लिए निकल जाऊं ले लीजिये साहब चख़कर देखिये बिलकुल ताज़ा है (अपना बर्तन नीचे उतारते हुए कहा) मैं अचानक आई उस आवाज़ से थोड़ा डर गया न जाने कब वो मेरे क़रीब आ गया मैं सहम कर तुरंत पुछ पड़ा, भाई कहाँ से हो ? साहब हम तो बड़ी दूर से आये है बड़ी सरल और सहजता से मुस्कुराते हुए उसने ये जबाब दिया, फिर भी कितनी दूर से भाई ? मैंने थोड़ा चिड़ते हुए पुछा उसने उसी मुस्कराहट के साथ बड़ी सहजता से कहा “साहब टीकमगढ़ से है” शहद लेंगे क्या ? “टीकमगढ़” अरे वाह ! और यहाँ कैसे ? मैंने बहुत उत्सुकता से पुछा वो फिर मुस्कुराया और कहा साहब बहुत लम्बी कहानी है जाने दो आप ये बताये शहद लेंगे क्या साहब ?
मैंने उसकी बात काटते हुए कहा हाँ-हाँ ज़रूर खरीदूंगा पहले तुम अन्दर आओ उसके मना करते हुए भी मैं उसे जबरजस्ती अन्दर ले आया घर के बरामदे में लगी कुर्सी पर बिठाया और श्रीमती को आवाज़ देकर कहा अरे सुनो ज़रा दो कप चाय बना दो और एक गिलास पानी ले आना” अरे नहीं साहब चाय-पानी नहीं चाहिए मुझे थोड़ी घबराहट के साथ कहा अब मैं मुस्कुराया और उसे सहानुभूति देते हुए कहा कि आराम से बैठो और ये बताओ की टीकमगढ़ में कहाँ रहते हो ? साहब टीकमगढ़ से लगभग 30-35 मील दूर मेरा गाँव है “तामिया” में वहां से हूँ “तामिया” नाम सुनते ही मेरे जी में मानो कोई लहर हिचकोले खा रही हो मैंने बड़ी उत्सुकता से उससे पुछा तुम तामिया में कब से हो उसने बिना किसी देर के तुरन्त कहा मेरा जन्म वही हुआ है साहब उसकी ये बात सुनकर मैं और खुश हो गया मेरी आँखों सामने वो पूरा मंज़र आ गया मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ना था
मानो मुझे कोई वर्षो का बिछड़ा मिल गया हो या किसी रोते हुए बच्चे के चहरे पर ख़ुशी की घटा छाने लगी हो तुम…. माधव…. को जानते हो…. ? हाँ साहब पर आप कैसे जानते है उसने संकोचपूर्ण पुछा वो सब में तुम्हे बाद में बताऊंगा पहले तुम बताओ की वो कैसा है ? साहब… वो… जी चाय मेरी पत्नी ने कहा, हाँ मैंने बड़ी स्पूर्ति से हाथों से चाय लेकर उसकी और बढ़ाते हुए कहा लो भाई जल्दी से चाय पियो मेरे इस व्यवहार को वो बहुत अचंभित रूप से देख रहा था मानो किसी स्वस्थ व्यक्ति को किसी पागल के पास छोड़ दिया हो डरते-डरते हाथ में चाय का कप लिया और कुछ विचार करने लगा की पत्नी ने कहा भैया चाय पीजिये और हल्की मुस्कान देकर जी शुक्रिया कहकर चाय पीने लगा मैं उसे घूरकर देख रहा हूँ इस लालसा से की कब इसकी चाय ख़त्म हो और कब मैं इससे आगे का हाल पुंछु कुछ देर बाद चाय का कप नीचे की और आते ही मैं बोल पड़ा चाय ख़त्म चलो अब बताओ माधव कैसा है ? बहुत उत्सुकता के साथ मैंने फिर पूछा ? साहब ! आप माधव कैसे जानते है ? उसने फिर उसी संकोच भाव से पुछा, अरे तुम पहले ये बताओ जो मैंने तुमसे पूछा है मेरे इस आक्रोश भरे भाव को देख वो डरते हुए आँखे नम कर के बोला साहब मा..धव…को गुज़रे तीन साल हो गए | मैं ध्वस्त हो पास रखी कुर्सी पर धम्म से बैठ गया मानो मेरे पैर से ज़मी ख़िसक गई हो और में सीधे नरक में जा गिरा |