शहंशाह
जो बीत गया पल
सुख का भी था
दुःख का भी
मन में था बोझ
बीते पल का जो
आनंद की लहरो को उठने नहीं देता था,
जाने क्यों व्यर्थ बोझ ढो रहा था
आनंद को खोज रहा था बाहर की
दुनियां में,भटकते भटकते अंदर उतर गया
हल्का और शांत हो गया
व्यर्थ के बोझ से
वहां आनंद था केवल आनंद
जिसको पाकर शहंशाह के भी शहंशाह
हो गए फकीर***
^^^दिनेश शर्मा^^^