शवरी
परम राम भक्त थी श्रमणा
शवरी ही कहलाती श्रमणा
कुलीन हृदया भक्त अनन्या
ऋषि मुनियों की करती सुश्रुषा
ऋषि मातंग आश्रम में
आंतरिक भक्ति होती प्रकट
प्रभु खाते शवरी बेर झूठे
टेक देखती थी प्रभु राम की
मतंग ऋषि ने कही बात आने की
भाव सेवा का था अति प्रबल
बाट देखे प्रभु की आश्रम में
पहुँचे राम आश्रम सीय ढ़ूढते
शवरी आकुलता की पलक पसारे
गद गद हुईं शवरी की हृदय स्थली
गिरते आँखों से अश्रु अति भारी
बेर झूठे प्रभु खाते प्रेम से
नवधा भक्ति के प्रवचन देते