शर्म
लघुकथा
शीर्षक – शर्म
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एक वेश्या को चाहने वाले शहर के जाने माने इज्जतदार रईस ने उस से पूछा – “तुझे धंधा करते हुए तुझे शर्म नहीं आती क्या ?”
– ” नहीं साहिब, मुझे अपना जिस्म बेचने में कोई शर्म नहीं आती, वल्कि शर्म तो तब आती है जब आप जैसे लोग मेरे जिस्म के साथ खेलते हो और इज्जत का लबादा ओढ़कर मुझे गालियाँ भी देते हो,,,, “- उस वेश्या ने मुस्कराते हुए कहा।
राघव दुबे
इटावा
8439401034