शर्म शर्म आती है मुझे ,
शर्म शर्म आती है मुझे ,
हिन्दुस्तानी कहलाने में
हिन्दी के शब्द कोष को,
अंग्रेजी में बतलाने में।
चल गया है प्रचलन अब
हिन्दी भी लिख न पाते
बोलना तो दूर दूर रहा
खिचड़ी मौज उडा़तै
आधा हिंदी,आधा अंग्रेजी
पूर्ण बोल न बताते हैं
खिचड़ी भाषा बोलकर
व्ही आई पी रूप दिखाते है।
बोलना है बोलिये
, शुद्ध भाषा का रूप
टोड़ रहे हैं टांग हिन्दी का
निशा लगी है धूप।।
छोड़ रहे हैं माथो की बिंदिया
छोड़ रहे हैं अपना संस्कार
रो रही है जग भारत माता
कहां गया अब हिंदुस्तान ।।
गांव, विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग