शरारत है कहाँ
****शरारत है कहाँ (ग़ज़ल)***
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चेहरों पर वो नज़ाकत है कहाँ,
अब दिलों में वो शरारत है कहाँ।
आदमी सारे यहाँ भय से भरे,
भेड़ियों से वो हिफाज़त है कहाँ।
मूर्खता से प्रोत दिखते ही नहीं,
पागलों सी वो हिमाकत है कहाँ।
मौत बिन आई सदा मरते रहे,
फौजियों जैसी शहादत है कहाँ।
आज मनसीरत नहीं है दम कहीं,
बागियों जैसी बगावत है कहाँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)