*शराब का पहला दिन (लॉकडाउन-कहानी)*
शराब का पहला दिन (कहानी)
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इमरती ने संदूक में रखे हुए रुपयों में से जब खर्च के लिए बीस रुपये निकालने चाहे तो देख कर उसकी तो चीख ही निकल गई। साड़ी के नीचे बहुत सँभाल कर और छिपाकर उसने बारह सौ रुपये रख दिए थे। उसी में से धीरे-धीरे बीस-तीस रुपये निकालकर खर्च करना शुरू हुआ था ।लेकिन रुपए कहाँ जा सकते हैं ? वह सोच में पड़ गई । लॉकडाउन चल रहा है । घर का दरवाजा अगर खुला भी रह जाए तो इस समय चोर डकैतों का कोई खतरा नहीं होता।
घर पर चारों तरफ एक निगाह डालते ही उसका शक गहरा गया । जरूर यह पति का ही काम होगा । वही एक घंटे से गायब हैं। दौड़ती हुई बदहवास अवस्था में इमरती घर के दरवाजे से निकल कर गली में आ गई और पागलों की तरह चारों तरफ पति को ढूँढने लगी । तलाश में ज्यादा देर नहीं लगी। सामने से ही हाथ में शराब की बोतल थामें लड़खड़ाते हुए कैलाश आ रहा था। पति का नाम कैलाश ही था ।
.इमरती के बदन में जैसे आग लग गई। इतनी मेहनत से मैं बर्तन माँज कर जैसे- तैसे बारह सौ रुपए लाती हूँ और इस बार तो बिना काम किए ही मालकिन ने बारह सौ रुपए हाथ में थमा दिए थे । यह कहते हुए कि इमरती ! हमारी गुँजाइश तो नहीं है, लेकिन फिर भी तुम्हारी हालत देखकर मना भी नहीं कर पा रहे हैं ।
तपाक से हाथ से बोतल छीनी । घसीटते हुए घर के दरवाजे तक ले आई । “कहाँ हैं रुपए ? क्या किया ? ”
कैलाश के मुँह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था । जो कह भी रहा था , वह अस्पष्ट था और बुदबुदाते हुए ही कुछ बोल पा रहा था । इमरती ने अपना सिर पकड़ लिया। ” हे भगवान ! अब महीना कैसे चलेगा ? अभी तो 17 मई तक लॉकडाउन है । फिर जाकर पता नहीं क्या हो ?”
पति बेसुध होने लगे थे । उन्होंने तो शराब ऐसे पी रखी थी कि जैसे मुफ्त में राशन बँट रहा हो। दौड़ती हुई इमरती मालकिन के घर की तरफ चल दी। रास्ते में सोचती रही कि किस मुँह से अपने पति की शराबी आदत को मालकिन के सामने बता पाऊँगी ? कैसे उनसे अब कुछ और रुपए माँग पाऊँगी ? और वह भी क्या दे पाएँगी ?
मालकिन के घर के दरवाजे पर घंटी बजाई और खुद मालकिन दरवाजा खोलने के लिए जब आईं तो इमरती उनको मुरझाई हुई देखकर आश्चर्यचकित रह गई । बगैर दरवाजा खोले ही उन्होंने कहा ” हमने तो तुम्हें पहली तारीख को ही वेतन के सारे रुपए दे दिए थे और लॉकडाउन रहने तक काम करने के लिए मना भी कर दिया था ताकि न कोई घर में आए, न कोई जाए ।अब क्या बात है?”
” मालकिन मैं बहुत परेशान हो गई हूँ। आपसे दो मिनट बात करनी है।” इमरती ने रुआँसे होकर जब कहा तो मालकिन ने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया। इमरती ने रोते-रोते सारी घटना मालकिन को बता दी और कहा कि अगर हजार रुपए एडवांस मिल जाएँ तो महीने भर का खर्चा चल जाएगा वरना भूखे पेट ही रोजाना सोना पड़ेगा ।”-कहते हुए इमरती रो रही थी ।
तभी उसकी नजर मालकिन पर गई। मालकिन की आँखों से आँसू बह रहे थे। इमरती समझी कि मालकिन मेरे दुख से दुखी हैं । कहने लगी ” मालकिन आप दुखी मत हो । मैं जैसे भी होगा , दिन काट लूँगी।”
तभी मालकिन ने इशारे से कहा “मैं तुम्हें अपने घर की हालत भी बताने जा रही हूँ।” और फिर साहब को पलंग पर जूते पहने हुए लेटी हुई अवस्था में मालकिन ने दिखा दिया। कहने लगीं ” यह भी सुबह से पिए हुए पड़े हैं । एक घंटा पहले घर से गए थे। अलमारी की सेफ में जितने रुपए रखे थे, सब उठाकर ले गए और पेटियों में भर – भर के शराब ले आए । तब से बैठकर पी रहे हैं। मैंने विरोध किया तो मुझे पीटने लगे ।”-कहकर मालकिन अपने शरीर पर पड़े हुए चोटों के निशान दिखाने लगीं। इमरती अपना रोना भूल गई और मालकिन के प्रति सहानुभूति से भर उठी ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 9 997615451