“शराबी बाप को देखो !”
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देखो! औलाद को,
तन पर कपड़ा नहीं।
घर में राशन-पानी की
कोई व्यवस्था नहीं।।
और देखो! शराबी बाप को,
तनिक भी शर्म नहीं।
ऐसे बाप को जहाॅं में–
जीने का कोई हक नहीं।।
देखो! अपनी जिन्दगी तो,
दिन-ब-दिन फूक रहा हैं।
और अपने मासूम बच्चों की
जिन्दगी भी अपने हाथों लूट रहा हैं।।
माॅं तो अपने बच्चों की
दो जून-रोटी की व्यवस्था में व्यस्त हैं।
और देखो! शराबी बाप को–
अपनी दुनिया में ही मस्त हैं।।
लानत है ऐसे बाप पर,
जो खून अपनों का पी रहा।
कुसंग का असर देखो! सांझ-सवेरे,
बिन शराब के जिन्दगी नहीं जी रहा।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=
===*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*====
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