शरम भी बेंच कर नेता…
☆☆☆ शरम भी बेंच कर नेता… ☆☆☆
{तीन मुक्तक}
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हमें आजाद करने को पिया था विष भरा प्याला
कटा कर शीश वीरों ने हमें दी जीत की माला
कि नेता आज के देखो महज़ सत्ता के भूखे हैं
शहीदों की शहादत को सिरे से ही भुला डाला
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हमीं से वोट लेते हैं हमीं पे ज़ुल्म करते हैं
वहाँ वे मौज करते हैं यहाँ हम रोज मरते हैं
हमारी जान की कीमत लगाकर क्या कहें साथी
शरम भी बेंच कर नेता महज़ अब जेब भरते हैं
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गिरे हैं जो यहाँ उनको उठाने कौन आता है
गरीबों के दुखों को अब मिटाने कौन आता है
चुनावों में दया का ये ढिंढोरा पीटते हैं पर
मिले कुर्सी तो फिर आँसू बहाने कौन आता है
– आकाश महेशपुरी