शरद पूर्णिमा
चाँद शरद जब चमकता , बरसे अमृत धार
प्रभू नाम की खीर से , पाये मानव सार
चन्दा सौलह कला से , जगा रहा उन्माद ,
हुलसी जाये देह जब , बढा रहा अवसाद
चाँद निशा से मिले जब , करे मगन हो रास
क्रीड़ा करते गगन में , करे मुदित मन हास
देख चाँद की कांति को , बाजे मनका तार
निखरे शोभा निशा की , पहन श्वेत हो हार
करे रमा उपवास जब , होती इच्छा पूर
मिले सभी वरदान तब , लागे मानस हूर