” शरद पूर्णिमा “
विश्वास है
आज कृष्ण आयेगें
ना गोपाला ना कान्हा ना माखनचोर ,
सब बांधाओं को तोड़
सबसे बाँध ह्रदय की डोर ,
वृन्दावन के वन में
गोपियों के मन में
रास रचाने संग में ,
चाँदनी बिखेर कर
प्रेम को लपेट कर ,
भक्तों को तारने
नफरत को मारने ,
प्रेम में झोंक हर
वक़्त को रोक कर ,
आयेगें बस
जस के तस ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08 – 10 – 2017 )