शरद पूर्णिमा (गीत)
शरद पूर्णिमा (गीत)
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यह शरद का चाँद अमृत आज है बरसा रहा
(1)
स्वच्छ नभ में ओस कण हैं या बसा अमृत कहो
कैसे हो रहा है चंद्रमा यह सब मुदित मन से रहो
देवलोकों को धरा का दृश्य यह तरसा रहा
यह शरद का चाँद अमृत आज है बरसा रहा
(2)
चाँदनी यह ओज की संपूर्णता लेकर चली
रश्मियों का दानदाता चंद्रमा देखो बली
सृष्टि का कण-कण अलौकिक नेह पा हर्षा रहा
यह शरद का चाँद अमृत आज है बरसा रहा
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रचयिता:रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 9997615451