शरद ऋतु ( प्रकृति चित्रण)
आज शरद निशा की चांदनी की छटा निराली है।
धरती की सुंदरता हृदय को भाने वाली है।
स्वच्छ – निर्मल नभ मंडल में,
तारे उज्जवल चमक रहे हैं
झिलमिल करते श्याम निशा में,
सहस्त्र दीपक जल रहे हैं।
धरा ने मानो श्याम वर्ण की,
पहनी साड़ी है।
जिसमें सितारों की जड़ी की,
छटा निराली है।
आज शरद निशा की चांदनी की छटा निराली है।
धरती की सुंदरता हृदय को भाने वाली है।
गगन महल में इन्दु की,
लगी हुई है महासभा।
सप्त ऋषि सब मंत्री गण हैं,
तारे प्रजा गण की उपमा।
निरख रही है वसुंधरा भी,
सभा निराली है।
किस प्रकरण के कारण यह,
सभा लगाई है ।
आज शरद निशा की चांदनी की छटा निराली है।
धरती की सुंदरत हृदय को भाने वाली है।
शरद की विवाह रात निशा में,
इन्दु वर सम लग रहा है।
झिंगुर शहनाई बजा रहे हैं,
परिवेश भी सज रहा है।
प्रकाश पुंज ले बारात चली,
तारे बाराती है।
दीप तारे या तारे दीप है,
भ्रम की जाली है।
आज शरद निशा की चांदनी की छटा निराली है।
धरती की सुंदरता हृदय को भाने वाली है।
अलंकार- उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास, भ्रान्तिमान
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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