शमा
शमा
नितजलती रही और रोती रही
सब महफिले रोशन करती रही
न मेरा जिस्म बचा न नूर बचा
और न रसिक का सुरूर बचा।
हर रोज जवानी छाती रही
मिलन की जलन तड़पाती रही
न देखे आंसू छलकते रहे
बस जाम पे जाम मचलते रहे।
मैं बुझ गई तो सेहरा हुआ
एक दिल पर घाव गहरा हुआ
रह गया अधूरा ख्वाबों का चमन
ये जिंदगी भी एक अफसाना हुआ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हि० प्र०