शुभ सवेरा
आया वैसे तो नव वर्ष है, भरी आशा का उत्कर्ष है l
बेशक बीता सघंर्ष है, याद करें तो कर्ष है l
ना लौटे अशुभ ये अर्ज है, उन्हें भूले तभी तो हर्ष है l
जिनका बीता पीछे शभु वर्ष है, उनका हितकारी निष्कर्ष है l
कहीं हो हल्ला, कहीं क्लेश है, कहीं भ्रष्टा, उग्री विचार विमर्श है l
ये मिट जाये तो सफल सन्देश है, तभी समृद्ध मानो देश है l
स्वागत में तो जोश है, देखना फंसे ना कोई निर्दोष है l
दूर आतंक, नशा, चरस रहे, उन्नति विकास परामर्श रहे l
शुभ शुभ कर्मों के हो आदर्श, भूले जो बीता अँधेरा है l
तभी जनमानस का शभु सवेरा है ll