शब्द
रोज शब्द
आत्महत्या
करते हैं
और रोज
जिंदगी पाते हैं
उम्मीद ही तो है
जो तेरे-मेरे
दरम्यान है…
साँस है…!
उम्मीद है
चलेगी..?
भोर होगी
रात होगी
तारे चमकेंगे
ये होगा…?
वो होगा…?
सपने होंगें..
स्वर्ग होगा..?
अब तू ही बता…!
माँग कर तुझको
क्या करूँगा..
देख कर तुझको
क्या करूँगा..?
सूर्यकांत