शब्द
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चराचर जगत को
पहचान व नाम देने के लिए
तुम्हें है मेरा नमस्कार.
शिव ने जब डमरू बजाया
शास्त्र कहते हैं हमारे कि
तब स्वर की हुई सृष्टि.
शिव सिर्फ ब्रह्मांड का ही
रचियता नहीं है.
उसने ब्रह्मांड में हर शोर को
स्वर में किया था मृष्टि.(परिशुद्ध)
उन स्वरों का जन्म
शिव के नृत्य के ताल व धुन पर
डम-डम करते डमरू से हुआ.
इसलिए स्वर ने
शब्द के होने से पहले ही
इस भूलोक और त्रैलोक्य कि
सभ्यता को छुआ.
तब
आज की जितनी विलक्ष्ण
उपलब्धियाँ हैं.
वे सारे पहले से ही थे.
मानव-जगत ने
उसका आवरण हटाया.
अपना एक सुंदर आचरण
बनाया.
शब्द किन्तु,नहीं थे,कभी नहीं
स्वर थे मात्र स्वर.
शब्द की कल्पना
आजतक कि उपलब्धियों का
अद्वितीय व प्रथम सोपान है.
इसकी कल्पना जिन्होंने भी किया
उन्हें है मेरा नमस्कार.
आज इस बात को ठहर कर सोचें.
कितना पुलक है-
कि मानव मन ने सोचा-
शब्द के बारे में,अक्षर के बारे में.
उसका मष्तिष्क कितना रहा होगा
विकसित.
उनकी सभ्यता
निश्चित तौर पर रही होगी
उन्नत.
शब्द है शक्ति,सभ्यता और संस्कृति का.
शब्द मानवीय जीवन का उपासनीय,
आराधनीय,
श्रेय,प्रेय,पूज्य.
यह शब्द है समुच्चय.
वास्तव में शब्द ने जीवन को अभिव्यक्ति दी.
वास्तव में जीवन का उदय हुआ.
सभ्यता के संस्कार शब्द से फूले, फले.
होती रही सभ्यता परिमार्जित.
सभ्यता ने
आकार ग्रहण किया अपना.
सभ्यता के विकास के
सारे कल्पनाओं को संकल्प दिया.
सारे संकल्पों को सिद्धि दिया.
मानवता के संस्कारों को
मानवीय आयाम दिए.
हमारे होने को निरन्तरता
देने वाले हैं शब्द .
दोस्तों ने गरिमायुक्त शब्दों का
किया निर्माण.
दुश्मनों ने कड़वे,गंदे अर्थों में
किया प्रयोग.
दोस्तों ने शब्द बढ़ाये.
दोस्ती का हाथ बढ़ाया.
दुश्मनों ने शब्द को
गोली,बंदूक,बारूद बनाया.
और करता रहा इससे प्रहार.
शब्दों के जख्म होते हैं और
इसके मरहम भी.
चुनना किसे है?
हक हमारा-तुम्हारा है.
ये जख्म इतिहास में भी टीसते हैं.
सदियों और पीढ़ियों में.
प्रेरित करते हैं
रचने युद्ध और विध्वंस.
शब्द का शाब्दिक प्रयोग
विज्ञान ही नहीं कला भी है.
जो जानते हैं वह मनीषी हैं.
आदरणीय और अनुकरणीय हैं.
शब्द भयभीत है.
कहीं ये टुच्चे लोग
जो नहीं जानते शब्द का प्रयोग.
इसकी गरिमा न लायें नीचे
किसी गंदे नालियों में न डुबायें.
शब्द सभ्यता का सूर्य है.
सूर्य में जो शक्ति है
सभ्यता में वह शब्द है.
चन्द्रमा में किरण कि जो गरिमा है
संसृति में वह शब्द है.
अंतस्तल कि भावना,कामना और चाहना
चाहे काम की हो,क्रोध की हो
युद्ध की हो,शांति कि हो
भोग की हो अथवा योग की हो
शब्द से रूपायित व रेखांकित होती है.
शब्द ही इनका सामर्थ्य है.
शब्द का अस्तित्व नहीं होता यदि
पर,होते लोग.
यह विचार कितना पीड़ादायक है.
जीवन,जगत एक घने अंधकार के
आवरण में छिपा होता.
प्रथम शब्द कहा जिसने
उन्हें है मेरा बार-बार नमस्कार.
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