शब्द
इतने शब्द कहाँ से लाते हो तुम?
कैसे बुनते हो ये ताना-बाना?
किस्सों की चादर कैसे बिछाते हो?
ये गीत-ग़ज़ल के तकियों पर
कैसे ख़्वाब बनाते हो?
कैसे गिरते हैं तुम्हारे अक्षर
उस चादर पर?
कैसे उसकी सिलवटों में
तुम उम्मीदें छिपाते हो?
इतने शब्द कहाँ से लाते हो तुम?
कैसे तुम्हारे पन्ने बन जाते हैं कम्बल?
घेर लेते हैं मुझे ऐसी दुनिया में
जहाँ मैं अदृश्य, और किरदार साकार होते हैं?
ऐसे टिमटिमाते भाव कहाँ से बनाते हो तुम?
इतने शब्द कहाँ से लाते हो तुम?
कैसे लेती हैं भावनाएँ अँगड़ाइयाँ?
कैसे अँधेरा भी रोशनी बन जाता है?
क्यों रात तुम्हारी कहानियों के बिना अधूरी है?
ऐसी क़लम कहाँ से लाते हो तुम?
इतने शब्द कहाँ से लाते हो तुम?