शब्द-विद्रोह-सुकमा नक्सली हमला…..
?सुकमा (छत्तीसगढ़) में नक्सलवादियों द्वारा किये गए हमले में हुई सैन्य-क्षति का विरोध करने हेतु उपजा शब्द-विद्रोह!!!)
हिन्द धरा के इतिहासों में जुड़ गयी नई कहानी है।
नक्सलवाद हुआ दुखदाई खून बहा ज्यों पानी है।
सुकमा की धरती फिर दहली टूटा फूलों का गमला।
भारत माता की छाती पर वज्र प्रहार बना हमला।
कब तक हिन्द सहेगा अपने घर की पत्थरबाजी को।
कोशिश करके दूर करो इस नादानी-नाराजी को।
नीति-नियंता नियम बनाकर कुछ तो यहाँ सुधार करें।
तलवारों में धार लगाकर रणभेरी तैयार करें।
कौरवदल में कृष्ण गए ज्यों शांतिदूत कहला भेजो!
जो अपने हैं मौका देकर उनको पास बुला भेजो!
फिर सेना को कूच करादो शंखनाद करवा करके।
चुन-चुन फिर कुत्तों को मारो जंगल में दौड़ा करके।
सत्ता की लाचारी मत गौरव पर भारी बनने दो।
शेरों की जंजीरें खोलो मुक्त शिकारी बनने दो!
रक्त बहाते जो पानी-सा उनको पाठ पढ़ा दो तुम।
लाश बिछाते जो वीरों की उनकी लाश बिछा दो तुम।
तुष्टिकरण की राजनीति या अंधभक्ति की यारी हैं।
मुट्ठी भर नक्सलवादी क्योंकर सेना पर भारी हैं।
स्यार लोमड़ी और कुतियों को नहीं नक्सली जनने दो।
शेरों को स्वच्छन्द करो जंगल का राजा बनने दो!
चीन-पाक भी देख रहे हैं नामर्दी – लाचारी को।
मुहर लगाकर पक्का कर दो भारत की खुद्दारी को।
शकुनी और जयचन्दों को गिन-गिनकर सबक सिखाने हैं।
ढूंढ़-ढूंढ़कर घर के भेदी सूली पर लटकाने हैं।
बंद करो शांति की भाषा सेना को मत क्रुद्ध करो!
जंगल में दावानल फूँको खान-पान अवरुद्ध करो!
द्वि-परिवेशीय भारत में अब राजसूय का अश्व चले!
असुर दुराचारी नीचों का यज्ञवेदि में हव्य डले।
तब भारत में रामचन्द्र की तेज-पताका फहराए!
अक्षुण और अखण्ड हिन्द का स्वप्न सूर्य-सा उग आए!
क्रय-विक्रय भण्डारण-वितरण नष्ट नक्सली मण्डी का!
रक्तबीज वध को आवाहन करना होगा चण्डी का!
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©तेजवीर सिंह ‘तेज’ 25/4/17