शब्द बिन, नि:शब्द होते,दिख रहे, संबंध जग में।
#पुनः_एक_गीत, #सादर_समीक्षार्थ
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स्वार्थ की, बुनियाद पर,
सब हो रहे, अनुबंध जग में|
शब्द बिन, नि:शब्द होते,
दिख रहे, संबंध जग में||
स्वांग ही, आधार बनकर,
प्रीति को, छलने लगा है|
प्रेम का, दीपक यहाँ छल,
क्षद्म से, जलने लगा है|
मतलबी, रिश्ते हुये हैं,
और सब, आबंध जग में|
शब्द बिन, नि:शब्द होते,
दिख रहे, संबंध जग में||
राम से, आरम्भ होकर,
राम में, रमना न आया|
धर्म का, जामन पड़ा पर,
सम दधी, जमना न आया|
सत्य पर, अब लग रहा है,
सद्य हीं, प्रतिबंध जग में|
शब्द बिन, नि:शब्द होते,
दिख रहे, संबंध जग में||
अर्थ के, कारण यहाँ
अप,नत्व ने, है अर्थ खोया|
काटने, अब पड़ रहे हैं,
जो यहाँ, जिसने है बोया|
हो रहे, संबंध खण्डित,
है नहीं, परिबंध जग में|
शब्द बिन, नि:शब्द होते,
दिख रहे, संबंध जग में||
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’