शब्द गुम हो जाता है
है उम्र का ज़ोर
या शायद कुछ और
कभी कभी
मुंह तक आते आते
शब्द गुम हो जाता है…
बेबस मन तड़पता है
दौड़ता है, भटकता है
पर वो …
अपना एहसास छोड़
जाने कहां छुप जाता है…
यूं लुकाछिपी खेल कुछ देर
अचानक फिर आ धमकता है
लेकिन महत्वहीन
ज्यों कृपाण रण और
दीपक रैन बिन
मूल्यहीन…..