शब्दो की माला
में अक्सर कहानियो व कविताओं की माला में शब्दों को पिरो लिया करता ।
कही ये टूट कर बिखर ना जाये इस ख़्याल से भी बहुत डरता हूँ ।
शब्दो को बुनने का बहखुबी हुनर है मुझमें ।
बस बिखरे हुए शब्दों को समेटने से जिझकता हु।
बहुत कुछ छुपा हुआ होता है अधूरे टूटे हुए शब्दों में । बस इक इसी ख़याल से भी खुद टूट जाता हूं ।
खुद कलम भी साथ नही देती मेरे इन हाथो का ।
जब बिखरे हुए । अल्फाज़ो को किसी कागज़ पर उतारने लगता हूँ । इसीलिए
कही ये टूट कर बिखर ना जाये इस ख़याल से भी डरता हूँ ।