शब्दो का खेल
शब्दो का खेंल
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रच-रच कर कुछ शब्द नयें।
अहसास को उनमें शामिल कर
भावो को फिर उनमें भरकर
किया अपना मन हल्का सा
रचित हुआ एक कवित रूप
उसे नाम दिया मैंने कविता था
कुछ भूत था उसमे शामिल।
वर्तमान गया है उसमें मिल।
भविष्य का कुछ पता न था
कुछ भावो………..
उसे नाम दिया……….
कुछ शब्द मनोरम रच ड़ालें
कुछ बहुत प्रिय…
कुछ दु:खद स्वप्न….
कुछ सर्वप्रिय….
पर सार का मुझको भान न था
कुछ भावो………
उसे नाम दिया…..
यें सब शब्दों का खेल है प्राणी
जिनको रच गाती अपनी वाणी
कुछ गीत मधुर रच ड़ालें।
कुछ गीत सुरीलें …..
कुछ अवसादी कुछ अलबेलें।
कुछ भावो………
उसे नाम दिया………
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड