शब्दों को मुस्कुराते हुए
एक दिन मैं
हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से
बुन रहा था शब्दों के जाल
ताकि उनमे अपने जज्बातों को पिरोकर
लिख सकूँ कोई भावयुक्त कविता
किन्तु जैसे ही मैं लिखता
कोई अक्षर
कोरे कागज़ पर उभर आते थे
खून के कुछ धब्बे
मैं असमंजस में था
कि आखिर ये हो क्या रहा है
मैं पागलों कि तरह
सारे अक्षरों को लिख रहा था
धीरे-धीरे मेरे हाथ
खून में डूब गए
किन्तु एक भी शब्द न बन सका
मैं सोच में डूबा था
तभी मुझे सुनाई पड़ी
सिसकियों की आवाज
मैं डरा सहमा इधर-उधर देखने लगा
तभी अचानक हिंदी वर्णमाला के सारे अक्षर
मेरे इर्द-गिर्द घूमने लगे
मैं अचेत हो गया
अचेतावस्था में मैंने देखा
उन शब्दों को आपस में मिलते हुए
देखते-देखते शब्दों की काया बन गयी
और प्रकट हुई
एक जीर्ण-शीर्ण काया वाली
एक मरियल सी औरत
उसकी आँखों से रक्तश्राव हो रहा था
मैंने घबराकर पूंछा
“कौन हो तुम?”
मगर वो कुछ न बोली
मुझे दया आ गयी
मैंने प्यार से पूछा
“माँ तुम कौन हो?”
मेरे शब्दों को सुनकर वो कुछ शांत हुई
और बोली “मैं हिंदी हूँ”
मैं आश्चर्य से बोला
आप मेरी माँ हिंदी हो?
तो वो बोली
“हाँ बेटा,दुर्भाग्य से मैं ही हिंदी हूँ”
मैं माँ के पैरों से लिपट गया
माँ ने कहा,”मुझे स्पर्श मत कर बेटा”
मैंने कहा ,”क्यों माँ?”
“मैं अछूत हूँ ”
मैंने माँ का हाथ पकड़कर कहा
“माँ! तुम तो हमारे ह्रदय में धड़कती हो
तुम अछूत कैसे हो सकती हो?”
माँ ने मेरे सर पर हाथ रख दिया
मैंने कहा “माँ,एक बात बताओगी?”
“पूछ बेटा ”
मैंने कहा,”माँ, ये तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है?”
माँ की आँखों से फिर खून के आंसू टपके
बोली,”बेटा, मेरी इस हालत के जिम्मेदार हैं
मेरे ही कुछ अपने
जो मेरा अस्तित्व नष्ट करने पर तुले हैं
बात करते हैं मेरे सम्मान की
किन्तु पीठ पीछे खंजर भोंकने का काम करते हैं
आज मैं खून के आंसू रोती हूँ
अपनों की इस निर्लज्जता पर
देख लेना एक दिन
मेरी हत्या कर देंगे ये लोग”
मैंने माँ के आंसुओं को पोछते हुए कहा
“माँ,ऐसा कुछ नहीं होगा
अभी भी भारत देश में
कमी नहीं है तेरे बेटों की
हम तुम्हारे सम्मान को
वापस लाएंगे माँ ”
तभी मेरी आँख खुल गयी
मैं चौंककर उठा
देखा चारों ओर
माँ नहीं दिखी
वो स्वप्न था या हकीकत
नहीं पता किन्तु
अब मेरे शब्द चमक रहे थे
मैंने आज देखा
अपने शब्दों को मुस्कुराते हुए