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9 Aug 2021 · 1 min read

शब्दों की गरिमा

डॉ अरुण कुमार शास्त्री

एक अबोध बालक ?अरुण अतृप्त

* शब्दों की गरिमा *

ओउम के महातम्य का

जगत में कोई ओर न छोर

जिस जिस रसना ने चखा

अन्तर्मन से होकर आत्मविभोर

वेदना से हुआ तिरोहित

सन्ताप हृदय का मिटा असीमित

कर्ण प्रिय सम्वाद से आसक्त हो

भक्ति रस का फिर किया रसपान हो

भोर सी लालिमा मस्तक पर समाई

नयनों में एक अद्भुत रौशनी पाई

सकल मनोरथ पूर्ण श्रद्धा भाव का

प्रस्फुटन तव परम आनंद का

सँकलित गुण दोष निकसे

फिर समाये त्रिज्या सजग

मिट गई कटु कंटकारी शंकिता

काया धवल रोप्य वर्णी

सहज ही हो गई

शीश नतमस्तक प्रभु ध्यान में

जब जब हुआ

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 416 Views
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