शब्दों की आवाज
मेरा प्यार मेरा गुस्सा,
मेरी नफरत मेरा रूतबा,
सब कुछ इस कलम से,
इसकी रौशनाई से है…
मेरी नज़र के सामने,
जब शब्द मुस्कुराते हैं,
वो बन के प्यार फिर,
कागज मे उतर जाते हैं…
तन्हाई में जब कोई,
अल्फ़ाज़ कहीं मिलता है,
तब वो अहसास से मेरे,
इन कागजों मे ढलता है…
हार जाते हैं जब अक्षर,
खुद से ही बने शब्दों से,
बनाता हूँ नयी इबारत फिर,
उनके ही अलग अर्थों से…
कुछ शब्दों के साथ कितना,
उनके आस-पास घटता है,
छलनी हो जाते हैं जब वो ,
बहुत दर्द उनमें पलता है…
समेटता हूंँ उन सभी को,
कुछ मरहम भी लगता हूंँ,
फिर ठीक करके उनको,
उनकी आवाज बनाता हूँ…
इनके साथ रहकर मेरा,
कुछ वक्त गुजर जाता है,
साथ पा कर शब्दों का,
मेरा ‘खयाल’ भी दिख जाता है…
©विवेक’वारिद’ *
रौशनाई- स्याही