शब्दों की अदालत में प्रजातंत्र!
शीर्षक – शब्दों की अदालत में प्रजातंत्र!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान।
मो. 9001321438
शब्दों की अदालत में प्रजातंत्र
गिरफ्तार है मुजरिम की तरह
वादों की हथकड़ियाँ टूटती नहीं
भाषणवीरों की जीभ घिसती नहीं
कम पड़ जाता एक प्रजातंत्र।
मुठ्ठियाँ तानें रहते मारने को
सफेदपोश मौनव्रत की साधना
रोज सैकड़ों बार हत्या कर
प्रजातंत्र को जीवित करना जानते
शमशान साधना-से कृत्य कर।
नित्य पेट भरते कागज में गेहूँ
गुनाह है रोटी चुपड़ी खाना
पेट्रोल का छौंक लजीज हैं!
भूख निकालना है राष्ट्रभक्ति!
मंहगाई पर मौन है देशभक्ति!
रोगी होना देशद्रोह की निशानी
मरना ही होगा बिना आँकड़ों के
दवा नहीं दारू ले सकते हैं…!
पियक्कड़ कंधों टिकी अर्थव्यवस्था
‘पद्मश्री’ मिले भारी पियक्कड़ों को!
चलेगा देश ऐसे ही बोलों क्या करोगे?
बंद! शब्दों की अदालत में प्रजातंत्र
घटनाओं के शब्दरूप जादूगर
नहीं हारता कोई मुकदमा प्रजातंत्र में
प्रजा के तंत्र की तंत्रिका पकड़ी गई!