शबनम
अलंकार पर आधारित
“अहसास ”
ओंस की शबनम से ,मोती
मांग में सजते रहे
हम लता की ओट से,
जब उन्हें तकते रहे
लब्ज थे खामोश ,
पर होठ कुछ कंप रहे
दोनों एक दूजे के ,
तीरे नज़र से मदहोश थे
बढ़ रही थी धड़कनें,
कैसे होगा सामना
बरसों से मिलन की,
पूरी हो रही जो साधना
मन मयूर का म रति
सा क्रीड़ाको,आतुर हुआ
पर विवश था जो
आलिंगन भी न कर सका
उनको पाने की तमन्ना,
का ख्वाब बुनते ही रहे
दिल के दर्द ,नयनों से
ही मोती बन ,झरते रहे
हम लता की ओट से ,
जब उन्हें तकते रहे
कुमुद श्रीवास्तव (वर्मा)..