शपथ
कर शपथ,कर शपथ, कर शपथ
बहुत ही कठिन है यह पथ
जीवन और मृत्यु के बीच
बहुत ही कम है फ़ासला
जिम्मेदारियों मे जूझता मानव
छोड देता है स्वयं को
परिस्थतियों पर
हो जाता है दास उसका
जैसे चलाती जीवन
चलना ही पडता है,
प्रतिदिन स्वयं से लड-लड कर
जीवन है कि जीना ही पडता है
कुछ अपने लिए,
कुछ अपनो के लिए,
बहुत कुछ औरों के लिए
कोई क्या कहेगा,की चिंता सताएगी
उल्टे-सीधे काम करायेगी
बाहरी आवरण ख़ूब लगे
कम से कम लोग तो न हंसे
अंदर से चाहे टूट जायें
पर दिखावा छूट न पाये
ऐसे कब तक जियेंगे
विष का घूंट कब तक पियेंगे
छोड दो ऐसे दिखावे का पथ
कर शपथ,कर शपथ,कर शपथ…..