Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Aug 2020 · 5 min read

शनिचरी

नई दिल्ली से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जाने के लिए राजधानी एक्सप्रेस में तमाम छोटी बड़ी मुश्किलों को पराजित कर भाई ट्रेन के रिजर्व सीट पर बैठा कर वापस हो गया।
मैं भी उदास थी कई कारण थे जिस में मुख्य कारण माॅं को छोड़ जाना था।
माॅं पिछले कई महीने से बिस्तर पर हैं “बीमार” उनको ऐसे छोड़ जाना अपराध बोध करा रहा था। मगर जाना जरूरी होने के वजह से यात्रा करना पड़ा।
भाई के जाने के दस पन्द्रह मिनट के बाद, एक 50 – 55 साल की महिला दनदनाते हुए बॉगी में दाखिल हुई। मुह में पान और अपने आप से ही लगातार बात किए जा रही थी। वो भी मुखर तरीके से उसके बात करने के उस सैली ने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया था। मेरे पास आकर बैठते हुए उस ने पूछा “यहां बैठ जाऊं” मैंने सपाट लहजे में जवाब दिया आप अपने सीट पे बैठें, दूरी जरूरी है।”
वो उठते हुए बोलने लगी “क्या जरूरी है दूरी … सिर्फ इंसानों के दूर रहने से सब ठीक रहेगा क्या? नज़र उठा कर देखो चारो तरफ़ तब पता चलेगा… खून बोकरवा कर साले लोग “रेलवे वाले” पैसा लेते हैं मगर सफाई के नाम पर, ऎसा लगता है घर छोड़ कर जोरु भाग गई हो और मरद मानुष के बस का न हो घर की सफ़ाई! पूरा घर कबाड़ पड़ा हो ऎसे।” मैं बस मुस्कुरा कर रह गई कुछ भी नहीं कहा।
वो एक सीट छोड़ दूसरे सीट पर बैठ चुकी थी मगर उसकी बात ख़तम ही नहीं हो रही थी।
और मैं अंदर ही अंदर डरी हुई भी थी और परेशान भी। अकेले इतने लंबे यात्रा पर पहली बार निकली थी।
बहुत देर तक घर से फोन आता रहा सब से बात करने के बाद। मैं किताब “1857 का स्वतंत्रता संग्राम” निकाल कर पढ़ने लगी।
बीच बीच में मन नहीं लगने के कारण फब भी देख ले रही थी फोन पे बात भी कर रही थी लेकिन पढ़ना ही मुख्य काम था।
इसी बीच वो महिला अचानक फिर से सामने आ खड़ी हुई बोली … “मेरा नाम शनिचरी है। क्या तुम कुछ खाओगी नहीं? मैं बहुत सारा खाना घर से लाई हूं चलो खा लो” मैंने फिर कहा nhi’ मैं इतनी जल्दी नहीं खाती ” उसने फिर कहा … कोई बात नहीं पूरा खाना बाद में खाना अभी थोड़ा खा लो … मैंने फिर कहा “मुझे बार बार खाने की आदत नहीं समय से ही खाती हूं।” इस बार वो अजीब तरह से मुझे देख रही थी। पर बोली कुछ नहीं …
ऐसे ही पढ़ते हुए एक बज गए वो फिर आ कर बोली “आज ही खाना है तुमको या कल सुबह? मैं मुस्कुरा दी और कहा “नहीं नहीं अभी खाऊंगी” और टिफिन से खाना निकाल कर खाने लगी। वो खा चुकी थी मैन देखा था इस लिए उन से कुछ नहीं पूछा। लेकिन मैं ध्यान दे रही थी वो महिला जो खुद को शनिचरी कह रही थी एक सुरक्षा कर्मी की तरह मेरे आस पास ही भटक रही थी। ऎसा लग रहा था मानो थकना उसने सीखा ही नहीं … मैं खा चुकी तो मेरे लाख मना करने के बावजूद वो पत्तल उठा कर कूड़े दान में फेंक आई, हिदायती लहजे में कहा …”कम्बल ठीक से ओढ़ लो … और जाडा लग रहा हो तो अपना कम्बल दे देती हूॅं … मैंने कहा “नहीं आंटी जरूरत नहीं … आप भी सो जाएं” … वो तपाक से बोली … आंटी दिखती हूं … मैंने पहले ही कहा … शनिचरी हूं… मतलब मेरा नाम शनिचरी है! मुझे ये सब पसंद नहीं आंटी वांटी” मुझे जोर से हंसी आ गई ट्रेन में लगभग सभी सो गए थे बस हम दोनों ही जगे थे। उस ने मुझे देखते हुए कहा “तुम हसते हुए अच्छी लगती हो हंसते रहा करो … बस दांत साफ रखो” मुझे और जोर की हंसी आ गई … फिर थोड़ी देर बाद मैंने कहा आप सोएं मुझे पढ़ना है” और किताब खोल कर पढ़ने लगी बीच बीच में देखती रही जैसे वो मेरी पहरेदारी ही करने को ट्रेन में चढ़ी हो। कोई भी शौच के लिए उठता तो वो अपने सीट से उठ कर मेरी सीट के पास आ जाती, फिर अपनी सीट पकड़ लेती। ऐसे ही सुबह के 5 बज गए नागपुर स्टेशन पर आते आते गाड़ी धीरे धीरे रुकी … अब वो उठी और मेरे नजदीक आकर … रात भर मुझे किताब पढ़ता देख … मुझ से मुखातिब हो उसके मुंह से जो सुबह का मेरे लिए पहला शब्द निकला वो था “तुम पागल हो”
मैं अपलक उसे देखती रह गई। बिना रुके ही उसने कहा सफेद सुंदर पन्ने को लोग न जाने क्यूं गंदा कर देते हैं। और फिर उसी में सर खपाते रहते हैं जैसे खजाना छुपा हो… मैंने पहले उसे ध्यान से देखा वो मेरे लिए अपरिचित थी, साथ ही कुछ घंटों की परिचिता भी। उसके देह पे गुदे ढेर सारे गोदने को देख कर मैंने कहा … आप इसको ऐसे समझो कि इसी गंदे पन्नों में दुनियां के तमाम समझदार “बुद्धिजीवियों के दिमादग का गोदना “टैटू” बना है। आप गोदना देख कर समझ जाती हो न गोदने के माध्यम से क्या कहा जा रहा है। किस का चित्र है उस चित्र का मतलब क्या है? उसी तरह हम इन पन्नों पे जो अक्षर बिखरे हैं उन्हें पढ़ कर जिस ने लिखा उसके नज़र और दिमाग से दुनियां, समाज के दुख सुख और उसके निवारण को समझने की बस कोशिश करते है, अभी तक समझे नहीं हैं… वो ठीक है ठीक है कह कर बात बदलते हुए बोली ..
“देखो मैं यहीं उतर रही हूं, तुम डरना मत … अच्छे से बैठी रहो पानी वानी पी लो … या वो भी समय देख कर ही करती हो … और हां ट्रेन पूरे से रुके तभी उतरना … चलती ट्रेन से उतरने की कोई जरूरत नहीं … फिर एकदम मेरे नजदीक आकर मेरे छोटे – छोटे बालों में उंगलियों से गुदगुदी करते हुए बोली … हे ऊपरवाले” और आगे बढ़ने लगी … मैंने कहा शनिचरी एक फोटो हो जाय … वो बोली ये सब चोचलेबाजी मुझे पसंद नहीं और जैसे आंधी की तरह आई थी वैसे ही शीतल बयार की तरह लौट गई … और मैं दूर तक उसे जाते देखती रही तब तक जब तक उसका नीला दुपट्टा उड़ उड़ कर दिखता रहा … मेरा सफ़र अभी बाकी था …
उस से बात करने के क्रम में ही पता चला था शनिचरी को पढ़ना नहीं आता था। उसके लिए कागजों पे बिखरे अक्षर निर्थक थे…
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
4 Likes · 1 Comment · 323 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक बार हीं
एक बार हीं
Shweta Soni
नया है रंग, है नव वर्ष, जीना चाहता हूं।
नया है रंग, है नव वर्ष, जीना चाहता हूं।
सत्य कुमार प्रेमी
यह अपना धर्म हम, कभी नहीं भूलें
यह अपना धर्म हम, कभी नहीं भूलें
gurudeenverma198
ଏହା କୌଣସି ପ୍ରଶ୍ନ ନୁହେଁ, ଏହା ଏକ ଉତ୍ତର ।
ଏହା କୌଣସି ପ୍ରଶ୍ନ ନୁହେଁ, ଏହା ଏକ ଉତ୍ତର ।
Otteri Selvakumar
हम बिहारी है।
हम बिहारी है।
Dhananjay Kumar
बस एक ही मुझको
बस एक ही मुझको
Dr fauzia Naseem shad
आकुल बसंत!
आकुल बसंत!
Neelam Sharma
प्यार
प्यार
Kanchan Khanna
"सिक्का"
Dr. Kishan tandon kranti
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
तूं ऐसे बर्ताव करोगी यें आशा न थी
तूं ऐसे बर्ताव करोगी यें आशा न थी
Keshav kishor Kumar
ये कटेगा
ये कटेगा
शेखर सिंह
*सूरज ने क्या पता कहॉ पर, सारी रात बिताई (हिंदी गजल)*
*सूरज ने क्या पता कहॉ पर, सारी रात बिताई (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
गीता हो या मानस
गीता हो या मानस
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
कविता
कविता
Rambali Mishra
#वाक़ई-
#वाक़ई-
*प्रणय*
!! वह कौन थी !!
!! वह कौन थी !!
जय लगन कुमार हैप्पी
मैं कुछ सोच रहा था
मैं कुछ सोच रहा था
Swami Ganganiya
𑒖𑒲𑒫𑒢 𑒣𑒟 𑒮𑒳𑓀𑒠𑒩 𑒯𑒼𑒃𑒞 𑒁𑒕𑒱 𑒖𑒐𑒢 𑒮𑒿𑒑 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒮𑓀𑒑𑒲
𑒖𑒲𑒫𑒢 𑒣𑒟 𑒮𑒳𑓀𑒠𑒩 𑒯𑒼𑒃𑒞 𑒁𑒕𑒱 𑒖𑒐𑒢 𑒮𑒿𑒑 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒮𑓀𑒑𑒲
DrLakshman Jha Parimal
🇮🇳 स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 🇮🇳
🇮🇳 स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 🇮🇳
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ईश्वर
ईश्वर
Neeraj Agarwal
रमेशराज के दो मुक्तक
रमेशराज के दो मुक्तक
कवि रमेशराज
इकांत बहुत प्यारी चीज़ है ये आपको उससे मिलती है जिससे सच में
इकांत बहुत प्यारी चीज़ है ये आपको उससे मिलती है जिससे सच में
पूर्वार्थ
4020.💐 *पूर्णिका* 💐
4020.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Love Night
Love Night
Bidyadhar Mantry
फिर एक पल भी ना लगा ये सोचने में........
फिर एक पल भी ना लगा ये सोचने में........
shabina. Naaz
खींचातानी  कर   रहे, सारे  नेता लोग
खींचातानी कर रहे, सारे नेता लोग
Dr Archana Gupta
शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे'र
शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे'र
Shivkumar Bilagrami
मैं परमेश्वर की अमर कृति हूँ मेरा संबंध आदि से अद्यतन है। मै
मैं परमेश्वर की अमर कृति हूँ मेरा संबंध आदि से अद्यतन है। मै
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
"मिलते है एक अजनबी बनकर"
Lohit Tamta
Loading...