शतरंज के खिलाड़ी
मेरे श्वेत घरों में बाजीगर मोहरे
आतुर करने वार।
तुमने उँड़ेल दिये
विश्व का सारा काला अध्याय
करते रहे श्वेत उसे मेरे मोहरे
बिता दिन बीत गयी रात।
मेरा युद्ध वहीं खड़ा रहा दुहराता हुआ
रणभेरी में रण का संगीत।
मैंने नाव खोले तुमने लहरें।
चल पड़ा लांघने समुद्र मैं
तुमने पिघला दिये सारे ग्लेशियर।
मैंने साहस बटोरे
तुमने फैला दिये बाढ़ का भय और डर।
मेरे श्वेत मोहरे
घेर खड़े हुए अपने राजा को।
तुमने समय के खंड को ‘काल’ बनाकर
मेरी ओर उछाला।
मैंने ओढ़ लिया धीरज।
तुमने दुर्भाग्य को पावक सा
मेरी ओर धकेला।
मैंने खुद को बना लिया बर्फ।
मैंने युद्ध की सीमारेखा पर
जमाये रखे हैं पैर।
तुम अपने चमत्कार आजमाते रहे
मेरे मोहरों पर ढ़ाई घर चल-चल।
मैं अपने मोहरे आगे-पीछे करता रहा।
खड़ा रहा किन्तु,सदल-बल।
मैंने घुटने नहीं टेके,तलवार नहीं फेंके।
तुमने भर दिये स्याह मेरे खानों में
मैंने निगाहें लिए फेर।
उज्जवल रही मेरे आँखों की रौशनी।
रास्ते स्पष्ट।
तुमने फेंके सेर भर का पत्थर
मुझपर।
मैंने सीख लिया उठाना सवा सेर।
युद्धक्षेत्र की परिधि पर यूं टिका रहा
मेरा अस्तित्व।
शह और मात का खेल ही तो है जीवन।
शह देने और मात से बचने का हुनर
ही तो है जीवन।
तुमने शह दिया
मैंने उतार डाला मुकुट।
बचा लिया अपने राजा का रूह।
इस तरह जी लिया जिंदगी का हर ढूह।
मैं जीतता रहा,तुम हारते रहे इस तरह।
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