शजर रूठा हुआ रहता है सावन रूठ जाता है
शज़र रूठा हुआ रहता है सावन रूठ जाता है ।
बुजुर्गों के बिना तो घर का आँगन रूठ जाता है ।
मुकद्दस दिल हो सीने में तो रहती है चमक कायम,
मगर हो खोट जो दिल में तो दर्पण रूठ जाता है ।
सदायें इश्क़ की पड़ती नहीं जब मेरे कानों में,
खनकता ही नहीं हाथों का कंगन रूठ जाता है ।
उठा मां बाप का साया हो सर से जिसके ऐ लोगो,
कि उस नादान से बच्चे का बचपन रूठ जाता है।
चहकती रहती है बेटी सदा मां बाप के घर में,
चली जाती है जब ससुराल आंगन रूठ जाता है ।
अगर रूठी है सजनी तो करे मनुहार है साजन,
जो सजनी मान जाती है तो साजन रूठ जाता है।
——राजश्री——