शक्ल दिखाने आए हो ?
शक्ल दिखाने आए हो महज़
या हमें फुसलाने आए हो,
यह पहली बार तो नही,
जब बहलाने आए हो,
आते हो, हर पाँच साल में एक बार,
हर बार झूठे वादे,
और झूठे तुम्हारे इरादे,
बनाते हो मूर्ख,
भोली-भाली जनता को,
महज़ चंद सिक्कों
और मय से ख़रीदते हो तुम,
इन भूखे-नंगों के हालात,
जो सिर्फ़ उस वक़्त,
वोट होते हैं तुम्हारे लिए,
वो इंसान ही तभी नज़र आते हैं तुम्हें,
वरना महज़ मोहरें हैं,
यह तुम्हारे लिए,
सड़कों पर जिए या मरें यह,
क्या किया इनके लिए कुछ तुमने कभी ?
तुम्हारी सफलता की नींव यह लोग,
जिन्हें तुमने नींव की तरह ही दबा दिया,
कुचला मसला और मिटा दिया,
फिर आया चुनाव तो,
तुम्हें फिर याद आयी इनकी,
अब क्या नए नए प्रलोभन लाए हो,
कुछ नए तरीक़े से फुसलाने आए हो,
कौन सा मुँह लेकर फिर,
शक्ल दिखाने आए हो???