शक्कर की माटी
बस पानी के रेला हम, बहते पानी के रेला हम
शक्कर की माटी में जन्मे फिर भी करय करेला हम।
सुख खाते सुविधाएं पीते झूठी शान में तन कर जीते
कुठियां भरी पड़ी है लेकिन देखो हम रीते के रीते
रात दिना चरते रहते है फिर भी रहे मरेला हम
शक्कर की माटी में जन्में फिर करय करेला हम
सांड रहे पर घर के भीतर,
घर के बाहर बने लड़इया
घुट भैये, चमचों, कुत्तों को
जन्म से कहते आये जी भैया
सूट बूट में रहते जी पर, मन से रहे सड़ेला हम
बढ़ने वाले को धकियाते, पीठ के पीछे ही बतियाते
बड़ों बड़ों की करें हजूरी और छोटों को चपत लगाते
बोझ बने सबकी छाती पर, कित्ते बड़े झमेला हम
शक्कर की माटी
जीवन जीते रहे दिखावा, बदला हमने बस पहनावा
मन कागा तन हंस सरीखा, खुद से करते रहे छलावा
दिवास्वपन में सोये जागे, शेख चिल्ली के चेला हम
भेद का छेद करें हम भारी,
करते स्वाहा की तैयारी
बाहर से खुद पिटकर आते
घर में पिटती नार विचारी
सड़े गले, गंदे समाज के गोबर के गुबरेला हम
शक्कर की माटी में जन्मे, फिर भी करय करेला हम।।