*शंका समाधान चाहता है*
एक कहावत सुनाता हूं
पहले से भी सुन रखे होंगे:
“अपने मन मियां मिट्ठू होना”
दिल में कितना ही कालापन हो
लेकिन ऐसे व्यक्ति अपनी बड़ाई
कभी भी बंद ही नहीं करते
करते ही जाते हैं, बिना अघाये
जैसे ‘अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता है ‘।
बस, यहीं से शुरू होती है
शंका..आशंका…….
सुराग, गवाही, सत्य की खोज
निरीक्षण- परीक्षण जांच- पड़ताल
दही चखना और बताना
ग्राहक को सही – सही बताना
बिक्रेता का विरोध करना
या बिक्रेता की तरफ से कुछ बक्शीस मिलना
चखने वाले का मुंह बंद करना।
सभी जानते है कि
सूरज की उपस्थिति है, तो दिन है
सूरज की अनुपस्थिति है, तो रात है
यदि कोई किसी के अधीन है तो
रात को दिन कहना होगा
और दिन को रात कहना होगा
हो सकता है, इसमें कुछ मजबूरियां भी हो
हो सकता है, वह दिनभर सोता हो
हो सकता है, रात को अपना काम करता हो
रात वाली ड्यूटी ही हो।
जो कुछ हम देखते हैं
हमेशा सत्य नही होता
जो हम नही देखते हैं
वह भी सत्य हो सकता है
हेराफेरी इसी को कहते हैं
परदे के पीछे का खेल
रखैल की तरह होता है
सामने कुछ है, पीछे अबूझ हैं ।
बच्चोंके प्रश्नों का उत्तर
बड़े भी नहीं दे सकते हैं,
जानना जरूरी हैं कि
उनके मन में ऐसे प्रश्न आए ही क्यों
आएं भी तो कैसे आएं
उनका उत्तर जैसे भी देना हो, देना हैं
समझाकर, बुझाकर, सुयोग्य डॉक्टर तरह
रोग का निदान करना है
वरना, वे छोटे प्रश्न एक दिन बड़े हो जायेंगे
वे न तो खा सकेंगे, न सो सकेंगे
न सकुशल जीने सकेंगे
शंका समाधान चाहता है
वरना, जज सलाखों में भेज देंगे।
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स्वरचित और मौलिक
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर