शंकर
जटा जूट की है राख , गल मुंड माल धार ।
काले साँप से लिपटत , रहत है नंदी द्वार ।। रहत है नंदी द्वार , पालन करत जग को है ।
नर मुनि भजत जिन्हे , जीवन देत जग को है ।।
किरपा से जग बढ़ा, शोभत है डमरू छटा।
कहलात भूतनाथ, संभालत गंग को जटा ।।