शंकर छंद और विधाएँ
शंकर छंद और विधाएँ
शंकर छंद 16- 10 , यति चौकल , चरणांत गाल
भोले भण्डारी शिव शंकर जी, नमन रुद्र अवतार |
डमरू बाले हरिहर मेरे , सृष्टि के सरकार ||
गेह हिमालय पर्वत ऊँचा , शुचि गंग है धार |
चंद्र भाल भी चमचम चमके, शम्भु के दरबार ||
महादेव हरिहर सब कहते , उमापति शिवनाथ ।
नंदी जी की करें सवारी , भस्म शुचि है माथ ||
करता है त्रिशूल भी सेवा, मृग छाल है साथ |
सभी चाहते अपने ऊपर , शिवा प्रभु के हाथ ||
सुभाष सिंघई
#शंकर छंद –
मात्रा २६ , यति १६ – १०, पदांत गुरु लघु.
(शंकर छंद में शंकर जी की स्तुति
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश |
पुत्र विनायक विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश ||
वाम अंग है जय जगदम्बा, पार्वती माँ नाम |
कार्तिकेय सुत गेह हिमालय , नम: श्री यह धाम ||
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शंकर छंद मुक्तक में
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश |
पुत्र विनायक विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश |
वाम अंग है जय जगदम्बा, पार्वती माँ नाम –
कार्तिकेय सुत गेह हिमालय , नम: श्री गिरजेश |
सुभाष सिंघई
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शंकर छंद गीत में
पुत्र विनायक विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश |मुखड़ा
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश || टेक
वाम अंग है जय जगदम्बा, पार्वती माँ नाम |अंतरा
कार्तिकेय सुत गेह हिमालय , नम: श्री यह धाम ||
भोले बाबा सब जन कहते , सँग जीव करुणेश | पूरक
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश || टेक
डमरू डम-डम बम-बम बोले , हैं त्रिलोचन एक |अंतरा
चन्द्र भाल पर चमचम चमके , गंग है नेक |
डमरू डम-डम बम-बम बोले , हैं त्रिलोचन आप |अंतरा
चन्द्र भाल पर चमचम चमकत , हरता है त्रिताप |
इस जग के मायापति जानो , है पूर्ण उपदेश | पूरक
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश || टेक
जटा भस्म मृग छाला तन पर , अनुपमा शृंगार | अंतरा
जय जय पशुपति नाथ तुम्हारी , हे रुद्र अवतार ||
शरणागत है यहाँ सुभाषा , हरना सभी क्लेश | पूरक
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश || टेक
सुभाष सिंघई
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#शंकर छंद –
मात्रा २६ , यति १६ – १०, पदांत गुरु लघु.
(शंकर छंद में शंकर जी की स्तुति
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश |
पुत्र विनायक विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश ||
वाम अंग है जय जगदम्बा, पार्वती माँ नाम |
कार्तिकेय सुत गेह हिमालय , नम: श्री यह धाम ||
त्रिशूल हाथ में डमरु डम डम , हैं त्रिलोचन एक |
चन्द्र भाल पर चमचम चमके , गँगोत्री है नेक ||
जटा भस्म मृग छाला पहने , अनुपमा शृंगार |
जय जय पशुपति नाथ तुम्हारी , हे रुद्र अवतार ||
काँवड़ यात्रा चलती सावन , है रुद्र अभिषेक |
दरबार जहाँ शिव शंकर का , वहाँ बाँछा नेक ||
चलते जाते करते रहते , शिवा ध्वनि उच्चार |
माथा टेके यात्रा पूरण , उमापति दरबार ||
सुभाष सिंघई
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शंकर छंद गीतिका में
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश |
पुत्र विनायक विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश ||
वाम अंग है जय जगदम्बा, पार्वती माँ नाम ,
कार्तिकेय सुत गेह हिमालय , नम: श्री गिरजेश |
त्रिशूल हाथ में डमरु डम डम , हैं त्रिलोचन एक ,
चन्द्र भाल पर चमचम चमके , गँगोत्री श्री केश |
जटा भस्म मृग छाला पहने , अनुपमा शृंगार ,
जय जय पशुपति नाथ तुम्हारी , हे रुद्र श्री भेष |
नंदीनाथ दिखे हैं वाहन , रहे आप सवार ,
भोले बाबा सब जन कहते , कहें श्री करुणेश |
सभी वर्ग के गण तुम रखते , सुनो श्री अवधूत,
शरणागत है यहाँ सुभाषा , हरना सभी क्लेश |
सुभाष सिंघई
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