वक़्त
खेलता है हमारे जज्बातों से तू
रोकता है रास्ता दिखाकर तू
कितना निष्ठुर, निर्दयी अन्यायी है तू
वक़्त नहीं विनाशी है तू !!!
तू तो कहता था साथ हू तेरे
रख कदम जीत लेंगे सारे घनेरे
थोड़ा रास्ता दिखाकर तू बदल गया
वक़्त था फिर से तू निकल गया !!!
आशा थी तुझसे की तू आएगा
एक साथ मिलकर सावन के गीत गाएगा
कर दिया धूप सावन के मौसम मे
दिखा दी औकात वक़्त के भ्रम मे !!!
सोचु तुझे या तुझे ही सोचु
बात करू तुझसे या बात करता जाऊ
यह फरमाइश अजीब है तेरी
तू बदल जाती है करके छोटी सी फेरी !!!
अबकी बार इंतज़ार है तेरे आने का
थोड़ा ख़ुशी और थोड़ा नमकीन वक़्त बिताने का
मुकर गया अगर तू अगर अबकी अपने वादे से
ओढ़ लूं चादर लेकिन तुझे आने ना दू !!!