वक़्त
घड़ी की टिक-टिक करके
बढ़ती सुइंयाँ कर जाती हैं इशारा…
पल भर में देखना चाहते हो जितना…
देख लो उतना…
क्यूंकि अगला पल
मैंने किसी और के नाम कर रखा है…
और तुमको बक्शी है
मात्र बुलबुले की ज़िन्दगी….
क्या तुमको भरम है……?
सुनील पुष्करणा
घड़ी की टिक-टिक करके
बढ़ती सुइंयाँ कर जाती हैं इशारा…
पल भर में देखना चाहते हो जितना…
देख लो उतना…
क्यूंकि अगला पल
मैंने किसी और के नाम कर रखा है…
और तुमको बक्शी है
मात्र बुलबुले की ज़िन्दगी….
क्या तुमको भरम है……?
सुनील पुष्करणा