वक़्त ख़ुद को इक दफ़ा दुहराएगा
वक़्त ख़ुद को इक दफ़ा दुहराएगा
जो किया आगे तेरे भी आएगा
तू न चाहे साथ में गाये मगर
वक़्त अपना गीत बेशक़ गाएगा
ग़म-ख़ुशी सब वक़्त के आधीन हैं
या हंसाए वक़्त या रूलाएगा
वक़्त से पहले कभी मिलता नहीं
जो लिखा किस्मत में वो ही पाएगा
गुल है ज़िन्दा जब तलक है शाख़ पर
शाख़ से गुल टूटकर मुरझाएगा
सोच ले करने से पहले ख़ूब तू
फ़िर ग़लत होने पे क्या पछताएगा
देर से मंज़िल मिलेगी ये समझ
बीच में ठहरा अगर सुस्ताएगा
उम्र सारी में न समझा जो कभी
दूसरों को प्यार क्या समझाएगा
रब की मर्ज़ी है अगर होगा वही
सूखा बादल आब भी बरसाएगा
सोच ले कुछ भी इकट्ठा गर करे
जाएगा ‘आनन्द’ क्या ले जाएगा
– डॉ आनन्द किशोर