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20 Aug 2018 · 1 min read

“वक़्त सबकी औक़ात बताता है”

वक़्त भी ना जानें ज़िन्दगी में क्या क्या करवाता है
दूर तलक ले जाकर फ़िर वापस ले आता है

चन्द दिन के मेहमां होते हैं सब,मौत से अनजां होते हैं
वक़्त इक़ इक़ करके, सबकी औक़ात बताता है

कोई दौलत पे गुमाँ करता है कोई शौहरत पे करता है
सब कुछ रह जाता है यहीं, कौन साथ ले जाता है

कोई तेरा मेरा कर यूँ ही वक़्त ज़ाया कर देता है फज़ूल
कोई बनकर मग़रूर जाने कितनों को सताता है

भूल जाता है घर ख़ुदा का, ग़ुरूर में अँधा हो जाता है
नहीं गिनता गुनाह, कि उसका भी बहीखाता है

कोई जाति पर इतराता है, कोई मज़हब पर इतराता है
इस दुनियां में भला कहाँ हर इक़ इंसानियत पाता है

बुढ़ापा क़रीब आता है,पिछला सब सामने आ जाता है
वक़्त भी ना जानें ज़िन्दगी में क्या क्या करवाता है

____अजय “अग्यार

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