वक़्त मेरा मदारी है
एक बहुत पुराना गाना था
वक़्त की हर शै गुलाम
वक़्त का हर शै पे राज ,
देखा जाये तो प्रथम
और अंतिम सत्य यही ,
मैं आज खड़ा इस धरा पे
कब मिट्टी हो जाऊंगा ,
जो आज समझ रहा खुद को
ही सब कुछ
कल कब नाम समक्ष ” था ” लग जायेगा ,
आज भंडार भरा है धन का
कब क्षण भर में खाली हो जायेगा ,
आज लोग पूछते हैं
कल को कोई पास न फटकेगा ,
आज साहब – २ सुनते
कान नही थकते लेकिन
कल को लोग वही बोलेंगे की
भैया बॉडी को जल्दी डिस्पोज़ करो ,
और अब तो आलम ये भी है
अच्छे अच्छों का चार कंधो
का इंतेज़ाम भी मुश्किल है ,|
तो सच बस इतना सा –
मैं हूँ इक छोटा सा बन्दर
वक़्त मेरा मदारी है
जो आज खड़ा हूँ सुख में तो
कल की पीड़ा भारी है
कल की पीड़ा भरी है |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’